क्या आप भी ETF मे Invest करने का मन बना चुके हैं पर कंफ्यूज हैं कि कौन सा ईटीएफ चुने?
सबसे जरूरी बात जो आपको किसी ईटीएफ में निवेश से पहले ध्यान रखनी है वह है उसकी liquidity यानि तरलता |
आज के इस लेख में हम ईटीएफ के ट्रेडिंग वॉल्यूम और लिक्विडिटी से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में बात करेंगे जिसके बारे में आपने कभी भी नहीं सुना होगा ।
यह कुछ ऐसी बातें हैं जो कहीं भी देखने या सुनने को नहीं मिलती है और आम निवेशक को इसके बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं रहती है|
मैं चाहूंगा कि आप इस लेख को ध्यान से पढ़ें और समझे कि ईटीएफ ट्रेडिंग के बैक एंड में क्या होता है।
शुरुआत करने से पहले आपको बताना चाहूंगा कि हमारी पिछली पोस्ट, ईटीएफ क्या है में बेसिक्स को अच्छे से समझाया गया है जिसे आप जरूर पढ़ें |
ईटीएफ में सौदे कैसे होते हैं | How ETF Trading Works?
अगर आप किसी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो उस फंड को खरीदने या बेचने के लिए आपको क्या करना पड़ता है?
अगर बात है mutual fund की तो कोई भी ट्रांजैक्शन करने के लिए हमें बिल्कुल भी टेंशन नहीं है क्योंकि यहां पर आपको अपना आर्डर पूरा करने के लिए किसी दूसरे इन्वेस्टर को खोजना नहीं पड़ता है |
आप इसके लिए सीधा उस एएमसी (AMC) से कांटेक्ट करते हैं और उसे अपनी रिक्वेस्ट डालते हैं खरीदने या बेचने के लिए।
यह तो हो गई म्यूच्यूअल फंड की बात अब अगर यही सौदा ETF के लिए हो तो फिर यह सब कैसे काम करेगा?
मैंने आपको पिछले लेख में यह बताया था कि ईटीएफ स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड करता है
अब आप सोचेंगे कि यह तो एक आम शेयर जैसा ही हो गया है और इसमें खरीदने और बेचने के संबंधित कोई भी समस्या नहीं आनी चाहिए।
आईडियली, अगर आप देखेंगे तो आपकी बात भी सही है कि एक्सचेंज पर तो कभी भी खरीदा या बेचा जा सकता है लेकिन एक बात ध्यान रखें कि किसी भी exchange पर ETF को बेचने या खरीदने वाला भी जरूरी होता है ।
क्योंकि आप जानते हैं कि अगर दूसरी तरफ कोई एक ही पार्टी है जैसे केवल खरीदने वाला ही है या फिर केवल एक बेचने वाला ही है तो फिर ट्रांजैक्शन यानि सौदा होगा ही नहीं।
तरलता की समस्या | The Liquidity Problem
अब आप पूछेंगे कि आखिर ये liquidity यानि तरलता है क्या ?
देखिये, यह शब्द शेयर मार्केट से जुड़ा हुआ है जहाँ हर दिन अनगिनत सौदे होते हैं |
अब चूंकि एक ETF भी शेयर बाजार से जुड़ा है तो लिक्विडिटी इसके लिए भी जरूरी है |
Liquidity का मतलब है कि किसी स्टॉक की कीमत को अधिक प्रभावित किए बिना उसे कितनी तेजी से खरीदा या बेचा जा सकता है |
- कम लिक्विडिटी – खरीदना / बेचना मुश्किल – घाटा
- अधिक लिक्विडिटी – खरीदना / बेचना आसान – फायदा
अब बाजार में इतने सारे ईटीएफ हैं और यह जरूरी नहीं कि सभी में लिक्विडिटी भरपूर है ।
ऐसा भी नहीं है कि उसमें हर तरह के निवेशक भरपूर पैसा लगा रहे हैं और लगातार एक आम शेयर के जैसे खरीदारी और बिक्री हो रही है।
अब किसी एएमसी ने एक ईटीएफ तो निकाल दिया तो अब उसे यह भी इंतजाम करना है कि उस ETF में liquidity भरपूर मात्रा में हो |
अधिक तरलता होने से कोई भी निवेशक जो भी उसमें इन्वेस्ट करता है उसे किसी खास समय में यूनिट्स को खरीदने या बेचने में तकलीफ ना हो।
अब आपके मन में यहां पर एक प्रश्न आ सकता है कि अगर किसी ने काफी मात्रा में किसी ईटीएफ यूनिट्स को खरीदने के लिए bid डाला है तो क्या कोई सेलर ऐसा भी होगा उस समय में जो इतनी अधिक मात्रा में उस ईटीएफ को बेच रहा हो।
आमतौर पर ऐसा नहीं होता है और यह परेशानी मैंने भी महसूस की है काफी बार।
यानी कि कई बार किसी ईटीएफ को खरीदने के लिए अगर आपने काफी बड़ी क्वांटिटी डाली है तो हो सकता है काफी देर तक आपका ट्रांजैक्शन पूरा ही ना हो और वह वैसे ही पड़ा रहे हैं।
इसी प्रकार की ट्रेडिंग वॉल्यूम के संबंधित परेशानियों को दूर करने के लिए ऑथराइज्ड पार्टिसिपेंट्स (Authorised Participants) की एंट्री होती है जिन्हें कई बार मार्केट मेकर भी कहा जाता है यानी बाजार को बनाने वाला।
ऑथराइज्ड पार्टिसिपेंट्स कौन होते हैं । Who are Authorised Participants in ETF?
Authorised participants (AP) जिन्हें आमतौर पर मार्केट मेकर्स भी कहा जाता है बड़े-बड़े ब्रोकिंग एजेंसीज और ब्रोकर होते हैं।
जो भी AMC किसी ईटीएफ को लॉन्च करती है वह ही इन मार्केट मेकर या ऑथराइज्ड पार्टिसिपेंट को अप्वॉइंट करती हैं।
इनका काम होता है ईटीएफ में लिक्विडिटी हो बना कर रखना।
यह लोग ईटीएफ को बिड कीमत पर खरीदते हैं और ऑफर वाली कीमत पर बेचते हैं।
अब जाहिर सी बात है कि यह bid और offer कौन लगाता है, यह हम और आप जैसे लोग लगाते हैं।
जैसे मान लें मैंने किसी ETF को खरीदने के लिए एक Buy bid डाली 5000 quantity की |
उसके थोड़ी ही देर बाद किसी और ने उसी दाम पर पर 15000 क्वांटिटी की बिड डाली तो टोटल क्वांटिटी हो गई 20000 |
लेकिन अगर उस वक्त बाजार में 20000 क्वांटिटी बेचने के लिए कोई भी सेलर मौजूद नहीं है उस प्राइस पर तो फिर आपकी bid ऐसे ही पड़ी रह जाएगी।
मार्केट मेकर का काम क्या होता है | What Market Makers do?
अब यहां पर आते हैं ऑथराइज्ड पार्टिसिपेंट वह यह देखते रहते हैं कि bid कितने कीमत पर लगी है |
मान लें कि आपने जो बिड लगाई वह करंट मार्केट प्राइस (CMP) से कम है या फिर उसके बराबर है और काफी देर तक आपका ऑर्डर एग्जीक्यूट नहीं हुआ।
फिर हो सकता है कि आप अपनी bid को रिवाइज करके मार्केट प्राइस से अधिक कर दें, थोड़ा बहुत अधिक।
अब इसी वक्त Market makers की एंट्री होगी और वह सारे buy आर्डर को एग्जीक्यूट कर देंगे और सभी कुछ खरीद लेंगे।
ठीक इसी प्रकार से बेचने के दौरान भी यह मार्केट मेकर्स ऐसा ही करते हैं।
अब आप पूछेंगे कि इससे मार्केट मेकर्स का फायदा क्या होता है तो देखिए जो भी ट्रांजैक्शन एग्जीक्यूट होता है उसमें हर bid और offers के बीच में अंतर होता है ।
कई बार यह अंतर काफी कम होता है और कई बारी अंतर थोड़ा बहुत अधिक भी हो सकता है तो यह ऑथराइज पार्टिसिपेंट क्या करते हैं कि इन्हीं अंतर का फायदा उठाते हैं।
यह लोग बाजार से कम भाव पर अधिक मात्रा में ईटीएफ की यूनिट्स को खरीदते रहते हैं और बाजार से अधिक भाव पर ईटीएफ की यूनिट को बेचते रहते हैं |
इसी तरह से इन मार्केट मेकर की कमाई होती रहती हैं।
इससे होता क्या है कि उस ETF में trading volume भी बना रहता है जिसे देखकर आम निवेशक भी उस में निवेश करते हैं और हाथ के हाथ इन ऑथराइज पार्टिसिपेंट का फायदा भी होता रहता है।
पर हां एक बात यहां ध्यान देने वाली है कि सभी ईटीएफ कंपनियां ऑथराइज पार्टिसिपेंट (AP) को अप्वॉइंट नहीं करती हैं, यह बात ध्यान रखें।
ईटीएफ में निवेश से पहले क्या देखें | Things to Watch Before ETF Investment?
जब भी आप किसी ईटीएफ को खरीदने जा रहे हैं तो आपको AUM (asset under management) और ट्रेडिंग वॉल्यूम पर ध्यान देना चाहिए ।
यहां पर ट्रेडिंग वॉल्यूम का सीधा मतलब है liquidity से |
जितनी अधिक लिक्विडिटी रहेगी उतनी ही आसानी हमें किसी भी ईटीएफ को खरीदने या फिर बेचने में होगी।
एक बात यहां ध्यान देने वाली है कि आप केवल हर 1 दिन का ट्रेडिंग वॉल्यूम देख कर के यह नहीं पता कर सकते हैं कि इस ईटीएफ में लिक्विडिटी कितनी है।
जैसा मैंने आपको पहले बताया कि वॉल्यूम को मेंटेन करने के लिए और किसी इंडेक्स को बराबर ढंग से ट्रैक करने के लिए ऑथराइज पार्टिसिपेंट्स का होना बहुत ही जरूरी है |
तो आप यह कैसे पता करें कि आपके ईटीएफ में एमसी ने ऑथराइज पार्टिसिपेंट्स किया मार्केट मेकर को अप्वॉइंट किया है जिससे वह लोग लिक्विडिटी को मेंटेन कर सकें?
यहां पर आप एक बात तो क्लियर कर ले कि यह जो भी ईटीएफ होते हैं वह स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड तो करते हैं मगर यह आम शेयर के जैसे नहीं होते।
ऐसे पता करें ETF का ट्रेडिंग वॉल्यूम और लिक्विडिटी
अब चलिए आपको एक बढ़िया तरीका बताता हूँ जिसकी मदद से आप फटाफट की जान पाएंगे कि आपके ETF में liquidity कितनी है और आपको उसे क्यों Buy या sell करना चाहिए।
इसके लिए आपको NSE India की वेबसाइट पर जाना पड़ेगा और वहां जाकर आप जो भी ईटीएफ को बाय या सेल करना चाहते हैं उसका Quote डाल करके उसका डिटेल्स चेक करें।
मैंने यहां पर दो फंड्स को सिलेक्ट किया है जिसका स्क्रीनशॉट आपके सामने हैं।
यह रेंडम सिलेक्शन है और इसमें मैं आपको दिखाने का प्रयास करूंगा कि कैसे आप केवल एयूएम और ट्रेडिंग वॉल्यूम देख कर के किसी फंड को ले लेते हैं पर वह उतना अधिक लिक्विड नहीं होता है।
यह जो फंड्स जो मैंने सेट किए हैं वह है टाटा का निफ़्टी ईटीएफ और एक्सिस का निफ़्टी ईटीएफ|
तो सबसे पहले टाटा का स्क्रीनशॉट देखें।
यह स्क्रीनशॉट लगभग साढ़े दस बजे का है और इसमें आप देख सकते हैं कि ट्रेडिंग वॉल्यूम दिखा रहा है 1683 और इस समय इसका मार्केट कैप है 217 करोड़ का।
अब यह दूसरा स्क्रीनशॉट देखें जो है एक्सिस निफ़्टी ईटीएफ का और इसमें trading volume देख सकते हैं कि 1030 है और इसका मार्केट कैप केवल एक करोड़ के आसपास है।
अब मैं यह प्रश्न आपके ऊपर छोड़ता हूं कि इन दोनों ईटीएफ में से अगर आपको लेना होगा तो आप कौन सा ईटीएफ चुनेंगे।
कुछ समय पहले तक मैं अपनी बात करूं तो मेरा सिलेक्शन कुछ इसी प्रकार से था कि मैंने यह देखा कि जिस ETF का AUM और Trading volume अधिक है उसी को अच्छा मानता था।
हालांकि यह तरीका गलत नहीं है और कई बार अधिकतर केस में यह सही रिजल्ट देता है पर अगर आपको बेस्ट ऑफ द बेस्ट चुनना है तो इसके लिए क्या करना पड़ेगा आइए जानते हैं।
ईटीएफ चुनने का बेस्ट तरीका | Best Method to Choose ETF
आप ऊपर वाले स्क्रीनशॉट में दायीं साइड में दोनों ईटीएफ के ऑर्डर बुक टेबल को देखें और देखें कि यह कितने क्वांटिटी और कितने प्राइस पर लगे हैं।
अब मान लें आपको 5000 क्वांटिटी में निफ़्टी ईटीएफ को खरीदना है तो अब Axis और Tata में से किस को चुनेंगे?
आपको क्या लगता है कि कौन सा अधिक लिक्विड होगा ताकि आपका आर्डर फटाफट एग्जीक्यूट हो जाए।
अब देखिए जहां एक और टाटा में 111 की सेल क्वांटिटी मौजूद है मार्केट प्राइस के आसपास वहीं पर एक्सिस में लगभग 9200 के ऊपर की क्वांटिटी मौजूद है|
तो अगर आपको बड़ी क्वांटिटी में कोई ETF को बाई करना है तो जैसे ही आप एक्सिस ईटीएफ में डालेंगे तो आर्डर तुरंत एग्जीक्यूट हो जाएगा और वह पेंडिंग नहीं रहेगा।
अब मान लें कि अगर आपने कोई मार्केट ऑर्डर टाटा ईटीएफ में लगा दिया तो छोटी-छोटी क्वांटिटी करके अलग-अलग प्राइस पर वह धीरे-धीरे एग्जीक्यूट होगा |
और होगा क्या कि धीरे-धीरे करते हुए आपका जो भी क्वांटिटी बाई होगा वह हमेशा अधिक दाम पर ही बाई होगा तो इस तरह से आप का घाटा हो सकता है।
अगर आप इन दोनों ईटीएफ के कुल बाई और सेल ऑर्डर और प्राइजेस पर नजर डालेंगे तो आप देखेंगे कि जो भी वॉल्यूम दिखा रहा है बाई या सेल साइड में वह टाटा ईटीएफ में काफी कम है |
वही एक्सिस ईटीएफ में देखेंगे तो बाई साइड में भी आपको यह 10,000 का आर्डर मिल जाएगा और वही sell-side में भी अब देखिए 9200 के बाद भी 10,000 का आर्डर दिखा रहा है।
तो इतने बड़े-बड़े ऑर्डर्स को देख कर के हमें यह लगता है कि Axis ETF में कहीं न कहीं ऑथराइज पार्टिसिपेंट्स (AP) हैं जो कि टाटा ईटीएफ में दिखाई नहीं देते।
जैसा मैंने आपको पहले बताया था कि आम शेयरों की तरह से ईटीएफ ट्रेड तो करते हैं पर वह पूरी तरह से उनके जैसे नहीं होते।
ऐसा इसलिए हैं क्योंकि कोई भी कंपनी का स्टॉक जो होता है उसका कुल नंबर फिक्स है मतलब कोई कंपनी एक तयं संख्या में ही अपने शेयर को जारी कर सकती है लेकिन ईटीएफ के साथ में ऐसा नहीं होता है।
यह जो बड़े-बड़े निवेशक होते हैं वह आम स्टॉक एक्सचेंज पर ईटीएफ को नहीं खरीदते हैं बल्कि बड़े-बड़े लॉट में सीधा AMC से ही खरीदते हैं |
कई बार AMC उनके लिए उस ईटीएफ के नए-नए यूनिट भी बना सकती है और इस तरह से उन्हें नए यूनिट एलॉट कर सकती है।
और अंत में …
इस तरह से हम कह सकते हैं कि कई बार ईटीएफ में ट्रेडिंग तो होती है पर लिक्विडिटी कम होती है|
ऐसा इसलिए हैं क्योंकि यह जो बड़े-बड़े ट्रांजैक्शन होते हैं यानी जो AMC नए-नए यूनिट्स बना करके सीधा सीधा बड़े निवेशकों को देती है वह एक्सचेंज पर नहीं होता है |
यह पूरा खेल ऑफ मार्केट होता है तो इसलिए आपको अपनी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म में इसका डाटा नहीं दिखेगा।
लिक्विडिटी के लिए आप इकोनामिक टाइम्स की यह रिपोर्ट देखें जिसमें SEBI कहता है कि सन 2015-16 में जहां 2% लोग ईटीएफ में इन्वेस्ट करते थे वही 2020-21 में यह संख्या महज 9% ही हुई है।
सेबी यह तो मानता है कि कम एक्सपेंस रेश्यो की वजह से ईटीएफ में इन्वेस्टमेंट थोड़ा बहुत बढ़ा है पर अभी भी इसमें liquidity की कमी हैं ।
इन सब चीजों पर सेबी आने वाले समय में जरूर ध्यान देगी और उसे सही करने की कोशिश करेगी जिससे ETF investment सबकी पसंद बन जाए।
कुल मिलाकर बाकी सब फैक्टर्स को भी ध्यान में रखते हुए आप इस प्रकार से किसी ईटीएफ के trading volume को भी चेक कर सकते हैं अगर आप किसी ईटीएफ में पोजीशन बनाने जा रहे हैं तब।