FII और DII कौन हैं? शेयर बाजार पर इनका क्या असर होता है?

भारतीय शेयर बाजार एक ऐसा महासागर है जहां पर रोजाना करोड़ों निवेशक पैसा लगाते हैं।

क्या आपको पता है कि FII और DII दो ऐसे प्रकार के निवेशक हैं जो इस महासागर में सबसे अधिक पैसा डालते हैं?

यहां पर FII का मतलब होता है Foreign institutional investors और DII का मतलब होता है Domestic Institutional Investors।

इन दोनों की उपयोगिता आप ऐसे समझे कि अगर यह दोनों ना रहे तो स्टॉक मार्केट में तरलता यानि लिक्विडिटी कम हो जाएगी और वह इतना डायनेमिक नहीं रहेगा।

तो इस लेख में हम आसान भाषा में समझाने का प्रयास करेंगे कि एफआईआई और डीआईआई का मतलब क्या है, उनका शेयर बाजार से क्या नाता है और इनके निवेश का भारतीय शेयर बाजार पर क्या असर होता है?

FII क्या होते हैं (Full form & Meaning in Hindi)?

FII का full form होता है Foreign institutional investors और इसका Hindi meaning होता है विदेशी संस्थागत निवेशक |

Foreign institutional investors वह बाहर के निवेशक होते हैं जो भारत में अपना पैसा लगाते हैं।

यह बड़े-बड़े इन्वेस्टमेंट फर्म, पेंशन फंड्स और हेज फंड्स होते हैं जो देश के बाहर से आते हैं।

इनका मुख्य उद्देश्य होता है विदेशी मुद्रा लाना और घरेलू बाजारों में पैसा लगाना।

यह एफ.आई.आई. भारत के आर्थिक विकास और व्यापार में भागीदारी बढ़ाते हैं और भारत की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद करते हैं ।

Foreign Institutional Investors के कुछ उदाहरण है –

  • Black rock Inc
  • JP Morgan asset management
  • Goldman sachs asset management
  • Morgan Stanley
  • Citigroup global markets

DII क्या होते हैं (Full form & Meaning in Hindi)?

DII का full form होता है Domestic Institutional Investors और इसका Hindi meaning होता है घरेलू संस्थागत निवेशक|

Domestic institutional investors भारत के घरेलू निवेशक होते हैं जो देश के शेयर बाजार में निवेश करते हैं।

यह म्युचुअल फंड्स, इंश्योरेंस कंपनी, बैंक और अन्य बड़े वित्तीय संस्थान होते हैं जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए काम करते हैं।

डी.आई.आई. का एक मुख्य उद्देश्य होता है देश के अंदर की बचत को शेयर बाजार में लगाना और विकास को प्रोत्साहन देना ।

Domestic Institutional Investors के कुछ उदाहरण है –

  • HDFC mutual fund
  • Reliance Mutual Fund
  • ICICI Prudential mutual fund
  • SBI Mutual Fund
  • LIC 

एफआईआई और डीआईआई के निवेश का क्या असर होता है?

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जब जब FII और DII का निवेश आता है तब भाररतीय बाजारों और अर्थव्यस्था पर यह प्रभाव पड़ता है :

1. पैसे का आना और लिक्विडिटी का बढ़ना

जब भी FII & DII इन्वेस्टमेंट करते हैं तब स्टॉक मार्केट में काफी पैसा आता है। जहाँ पर एफ.आई.आई. बाहर से पैसा लाते हैं वहीँ डी.आई.आई. देश के भीतर से।

2. सेंटीमेंट में बदलाव

संस्थागत निवेशकों के निवेश से शेयर बाजार का मूड बदल जाता है।

FII-DII के आने से बाजार में खुशहाली रहती है जबकि जब भी यह पैसा निकालते हैं तब बाजार में घबराहट देखने को मिलती है

3. शेयर की कीमतों पर असर

किसी भी संस्थागत निवेशकों के बड़े ट्रांजैक्शन से किसी शेयर की कीमत पर काफी असर होता है खासकर विदेशी।

अगर Foreign institutional investors बड़ी मात्रा में खरीदने हैं तो स्टॉक की कीमतें बढ़ती है और अगर वह बड़ी मात्रा में बेचते हैं तो कीमतें घट जाती है।

4. सेक्टर पर प्रभाव

Institutional investors अक्सर ही किसी खास सेक्टर में इन्वेस्ट करते हैं।

मान ले जैसे कि अगर एफआईआई ने टेक्नोलॉजी सेक्टर में विशेष रूप से इन्वेस्ट किया तब टेक्नोलॉजी के स्टॉक में उथल-पुथल देखने को मिल सकती है।

5. बाजार में उतार-चढ़ाव

घरेलू और विदेशी संस्थागत निवेशकों की की खरीदारी और बिकवाली से बाजार में भारी उतार-चढ़ाव आता है।

6. इकोनामिक ग्रोथ

Institutional investors खास करके विदेशी जब भी बाजार में भारी मात्रा में निवेश करते हैं तब अर्थव्यवस्था में तेजी देखने को मिलती है ।

7. मार्केट केपीटलाइजेशन में बढ़ोतरी

FII – DII के निवेश से स्टॉक मार्केट की कुल केपीटलाइजेशन बढ़ जाती है इससे मार्केट का साइज बड़ा होता है और इन्वेस्टर्स को काफी भरोसा मिलता है।

एक उदाहरण

एक अच्छा उदाहरण है 2008 के वित्तीय संकट का, तब FII ने भारी मात्रा में अपना पैसा निकाला था जिसनें भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया था

वही 2020 में जब कोविड की वजह से ग्लोबल फाइनेंशियल मार्केट में काफी उछल कूद हुई थी तब भी एफ.आई.आई. ने भारी मात्रा में पैसा निकाला था और उसका असर भारत के शेयर बाजार पर भी देखने को मिला था।

वहीं पर 2020 के अंत तक जब स्थितियां सुधरने लगी तब आर्थिक सुधारो में तेजी को देखने के बाद Foreign Institutional investors वापस लौटे और उन्होंने बड़े पैमाने पर निवेश किया और उसके बाद बाजार में काफी तेजी आई।

दूसरी तरफ अगर देखा जाए तो DII ने अपना पैसा भारत के स्टॉक मार्केट में लगाए रखने का प्रयास किया है और यह भी देखा गया है कि जब फिर भारी मात्रा में पैसा निकाल रहे थे तब इन्होने ने भारी मात्रा में पैसा भारत के शेयर बाजार में लगाए रखा जिससे कि बाजार का सेंटीमेंट खराब ना हो।

FII और DII का डाटा कहां देखें?

ये डाटा देखने के लिए आप NSE या फिर किसी और financial website पर जा सकते हैं जैसे Moneycontrol.

यहाँ पर आपको हर दिन के हिसाब से खरीदारी और बिकवाली का डाटा मिल जायेगा |

ऐसा क्यों होता है कि जब FII बेचते हैं तब DII खरीदते हैं?

जब एफ.आई.आई. बड़े पैमाने पर किसी स्टॉक या सेक्टर में निवेश करते हैं तो यह मार्केट सेंटीमेंट को काफी प्रभावित करता है।

उनकी खरीदारी के दौरान शेयर की कीमतें बढ़ती है और इसे भारत में अच्छे वित्तीय संशोधन के संकेत के रूप में भी देखा जाता है।

यदि एफआईआई. किसी विशेष सेक्टर में बड़ी मात्रा में पैसा लगाते हैं तो उसे सेक्टर में तेजी आती है और शेयर बाजार में वृद्धि होती है।

वहीं पर अगर FII बड़े पैमाने पर बेचते हैं तो यह शेयर मार्केट में थोड़ी घबराहट और गिरावट ला सकता है।

इस समय बाजार में उतार चढ़ाव काफी बढ़ जाता है और बाजार का सेंटीमेंट भी गिरने लगता है |

ऐसे समय में डी.आई.आई बाजार में भरोसा दिखाते हैं और तात्कालिक स्थिति को देखते हुए काम करते हैं |

अगर उन्हें लगता है कि FII के बेचने के दौरान उस शेयर की कीमतें गिरेंगी तो वह लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट अपॉर्चुनिटी को देखते हुए और उसमें अपना फायदा देखते हुए उन शेयरों में निवेश करते हैं।

तो इस प्रकार से देखा जाए तो DII अक्सर शेयर बाजार को बैलेंस करने का प्रयास करते हैं।

यहां पर आपको यह बात ध्यान देनी चाहिए कि विदेशी संस्थागत निवेशक अधिकतर शॉर्ट टर्म से मीडियम टर्म के लिए इन्वेस्ट करते हैं और वहीं पर घरेलू संस्थागत निवेशक अधिकतर लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट करते हैं।

पर यह जरूरी नहीं है कि हमेशा ऐसा ही हो और यह बाजार की दशा और इकोनामिक कंडीशन को देखते हुए ही होती है।

निवेशकों के लिए सीख

FII-DII के रुझानों पर नजर जरूर रखें लेकिन सिर्फ उन्हीं के आधार पर अपने फैसले न लें।

अपनी रिसर्च करें और कंपनियों की फंडामेंटल स्थिति को समझें।

लंबे समय के नजरिए से निवेश करें, बाजार के उतार-चढ़ाव से घबराएं नहीं और सही रणनीति बनाकर आगे बढ़े।

डायवर्सिफिकेशन को ना भूले और अलग-अलग सेक्टर और कंपनियों में निवेश करें।

एफ.आई.आई. और डी.आई.आई. दोनों ही भारतीय शेयर बाजार के महत्वपूर्ण स्तंभ है और बाजार को एक नई ऊँचाई पर ले जाने के लिए इनका साथ जरूरी होता है |

इसलिए यह जरूरी है कि मार्केट के सारे पार्टिसिपेंट एक दूसरे के व्यवहार को समझें और बाजार में स्थिरता और विकास को बरकरार रखें।

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