म्यूचुअल फंड क्या है और कैसे काम करता है | Mutual Fund in Hindi

म्यूचुअल फंड भारत में  निवेश का एक मशहूर विकल्प है जिसकी मदद से आप शेयर, बॉन्ड या फिर अन्य प्रकार की सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट कर सकते हैं और जो प्रोफेशनल फंड मैनेजर द्वारा मैनेज किए जाते हैं।

अगर आप एक नए निवेशक हैं जिसने अभी तक स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट नहीं किया है तो फिर आप म्यूच्यूअल फंड से इसकी शुरुआत कर सकते हैं।

नए निवेशकों की मदद के लिए ही हम यह लेख लेकर के आए हैं जिसमें आज हम बात करने वाले हैं कि mutual fund kya hai, कितने प्रकार के होते हैं, mutual fund kaise kaam karta hai, उनके फायदे और नुकसान क्या क्या है?

Mutual funds से जुड़े इन बेसिक बातों को ध्यान में रखकर के नए investor और आत्मविश्वास के साथ इनमें निवेश कर सकते हैं और बेहतरीन रिटर्न भी पा सकते हैं।

Table of Contents

म्यूचुअल फंड क्या होता है | What is Mutual Fund in Hindi?

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Mutual Fund का Hindi meaning होता है आपसी निधि या कोष |

इसका मतलब है कि लोगों की आपसी सहमती से एक ऐसा फंड या कोष बनाया जाता है जिसमें परस्पर सभी निवेशकों का पैसा लगा होता है |

Mutual Fund एक professionally managed निवेश योजना है जिसकी मदद से बड़ी संख्या में निवेशकों से पैसा जुटाया जाता है और इस पैसे को तरह-तरह की सिक्योरिटीज के पोर्टफोलियो में इन्वेस्ट किया जाता है।

इस पूरे पोर्टफोलियो का मैनेजमेंट एक प्रोफेशनल फंड मैनेजर के द्वारा किया जाता है जिसका काम होता तरह तरह की सिक्योरिटी जैसे स्टॉक, बॉन्ड इत्यादि को चुनना और मैं सही समय पर खरीदने और बेचने का निर्णय लेना जो निवेशकों के हित में हो ।

निवेशक इस म्यूच्यूअल फंड में यूनिट्स को खरीदते हैं जो पूरे पोर्टफोलियो में उनके शेयर यानी हिस्से को दर्शाता है।

India में म्यूचुअल फंड SEBI  यानि Security and Exchange Board of India द्वारा रेगुलेट किया जाता है।

भारत में म्यूच्यूअल फंड का इतिहास | Mutual Fund History in India

भारत में पहला म्युचुअल फंड, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) द्वारा 1963 में स्थापित किया गया था|

सन 1990 के दशक की शुरूआत तक यूटीआई ही देश का एकमात्र म्यूच्यूअल फंड रहा उसके बाद निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों को बाजार में प्रवेश करने की अनुमति दी गई।

म्यूच्यूअल फण्ड उद्योग को रेगुलेट यानी नियंत्रित करने के लिए सन 1992 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी SEBI की स्थापना की गई और तब से यह उद्योग बहुत ही तेजी से बढ़ा है |

मार्च 2023 तक भारत में कुल 44 म्यूच्यूअल फंड हाउस हो गए थे जिनका 40 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) था |

भारत में म्यूचुअल फंड के प्रकार | Types of Mutual Funds in Hindi

म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट

India में तरह-तरह के mutual funds है जो जिसमें निवेशक अपने फाइनेंशियल गोल, निवेश की अवधि और जोखिम लेने की क्षमता को देखते हुए इन्वेस्टमेंट करने का सोच सकते हैं।

भारत में उपलब्ध 6 मुख्य प्रकार के म्युचुअल फंड के बारे में यहां पर बताया जा रहा है।

1. इक्विटी म्यूचुअल फंड | Equity Mutual Fund

इक्विटी म्यूचल फण्ड मुख्य रूप से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में निवेश करता है|

उनका मुख्य लक्ष्य होता है मजबूत और आगे बढ़ने वाली कंपनियों के शेयर में निवेश करके बढ़िया रिटर्न्स कमाना।

इन इक्विटी फंड को कंपनियों के आकार के आधार पर 3 भाग में बांटा जा सकता है जो है:-

1.1. लार्ज कैप म्यूचल फण्ड | Large Cap Funds

ऐसे म्यूचुअल फंड फंड stable growth और earning के ट्रैक रिकॉर्ड वाली बड़ी और बेहतर ढंग से स्थापित कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं।

उदाहरण के लिए – Axis Bluechip Fund केवल बड़ी और ब्लूचिप कंपनियों में निवेश करता है जैसे रिलायंस, HDFC, इनफ़ोसिस इत्यादि 

1.2. मिड कैप म्यूच्यूअल फंड | Mid Cap Funds

ऐसे फंड मध्यम आकार की कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं जिनमें हाई रिटर्न्स की संभावना होती हैं लेकिन इनमें जोखिम भी अधिक होता है।

उदाहरण के लिए – SBI Magnum Midcap Fund केवल माध्यम आकार के मार्किट कैपिटलाइजेशन वाली कंपनियों में निवेश करता है जैसे Thermax, Triveni turbine, JK cement इत्यादि |

1.3. स्मॉल कैप फंड | Small Cap Funds

ऐसे फंड बहुत ही छोटी आकार की कंपनियों में निवेश करते हैं जिनमें उच्चतम वृद्धि की संभावना होती है लेकिन इसमें जोखिम भी सबसे अधिक होता है।

उदाहरण के लिए – Nippon India Small Cap Fund अधिकतर छोटे आकार के मार्किट कैपिटलाइजेशन वाली कंपनियों में निवेश करता है जैसे Balrampur chini, Orient Electric, Tejas Network इत्यादि |

इक्विटी म्यूचुअल फंड लंबी अवधि और उच्च जोखिम वाले निवेशकों के लिए ही उपयुक्त है|

2. डेट म्यूचुअल फंड | Debt Mutual Funds

डेट म्यूचल फण्ड मुख्य रूप से फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज जैसे सरकारी बॉन्ड, कॉरपोरेट बॉन्ड और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं ।

उनका लक्ष्य कम क्रेडिट रिस्क और स्थिर रिटर्न वाली सिक्योरिटी में निवेश करके निवेशकों के लिए रेगुलर इनकम कमाना होता है।

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कुछ मशहूर प्रकार के debt fund है:-

2.1. लिक्विड म्यूचल फण्ड | Liquid Fund

ऐसे म्यूचुअल फंड सेविंग अकाउंट के जैसे ही तरलता प्रदान करते हैं और यह 91 दिनों तक की मैच्योरिटी वाले अत्याधिक लिक्विड मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं।

Liquid fund ऐसे निवेशकों के लिए बेहतरीन है जो अपने फंड को कम समय के लिए कहीं निवेश करना चाहते हैं।

उदाहरण के लिए – Aditya Birla Sun Life Liquid Fund एक लिक्विड फंड है |

2.2. शोर्ट टर्म म्यूच्यूअल फंड | Short Term Fund

Short term debt fund 3 साल तक की मैच्योरिटी वाले डेट सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं।

ये फंड ऐसे निवेशकों के लिए बढ़िया है जो शॉर्ट से मीडियम टर्म के लिए अपना पैसा कहीं निवेश करना चाहते हैं और जो लो से मीडियम रिस्क भी ले सकते हैं।

उदाहरण के लिए – ICICI Prudential Short Term Fund एक शार्ट टर्म डेट फंड है |

2.3. लॉन्ग टर्म म्यूचल फण्ड | Long Term Fund

लॉन्ग टर्म डेट फंड 3 साल से अधिक की मैच्योरिटी वाली डेट सिक्योरिटी में इन्वेस्ट करते हैं।

ऐसे फंड लंबी अवधि वाले निवेशकों के लिए बढ़िया है पर इनमें जोखिम काफी होता है क्योंकि यह काफी अधिक इंटरेस्ट रेट सेंसिटिव होते हैं |

इसका मतलब है कि इन में बढ़ती और घटती हुई ब्याज दरों का काफी प्रभाव पड़ता है।

उदाहरण के लिए – ICICI Prudential Long Term Bond Fund एक लॉन्ग टर्म डेट फंड है |

तो कुल मिलाकर के कहा जाएं तो डेट फंड उन निवेशकों के लिए बेहतर है जो इक्विटी की तुलना में कम जोखिम ले सकते हैं और रेगुलर इनकम पाना चाहते हैं।

3. हाइब्रिड म्यूचुअल फंड | Hybrid Mutual Funds

हाइब्रिड फंड का मतलब है इक्विटी और डेट सिक्योरिटी का मिक्सचर और ऐसे फंड इन दोनों आप्शन में ही निवेश करते हैं।

Hybrid equity fund सबसे अधिक डायवर्सिफाइड होते हैं और इनकी मदद से कैपिटल अप्रिशिएसन के साथ-साथ बढ़िया ग्रोथ भी मिलती हैं।

इक्विटी और डेट के रेशियो के आधार पर हाइब्रिड फंड को विभिन्न प्रकार में बांटा जा सकता है:-

3.1. बैलेंस्ड म्यूचल फण्ड | Balanced Fund

Balanced fund 60:40 के अनुपात में इक्विटी और डेट सिक्योरिटी के मिक्सचर में निवेश करते हैं।

इसका मतलब है कि कुल पोर्टफोलियो का 60% इक्विटी और स्टॉक मार्केट में निवेश होगा और वही 40% डेट सिक्योरिटी में निवेश होगा।

3.2 अग्रेस्सिव हाइब्रिड फंड | Aggressive Hybrid Fund

ऐसे फंड में 65 से 80% तक का रेश्यो इक्विटी में इन्वेस्ट किया जाता है और वही बाकी का डेट सिक्योरिटी में जाता है।

उदाहरण के लिए – HDFC Hybrid Equity Fund एक अग्रेस्सिव हाइब्रिड फंड है जिसमें इक्विटी 67% और डेट 33% है  |

3.2 कंजरवेटिव हाइब्रिड फंड | Conservative Hybrid Fund

ऐसे फंड में 75 से 90% का रेश्यो डेट में और बाकी का इक्विटी में निवेश किया जाता है।

उदाहरण के लिए – ICICI Prudential Income Optimizer Fund एक कंजरवेटिव हाइब्रिड फंड है जिसमें इक्विटी 28% और डेट 72% है  |

हाइब्रिड फंड एक प्रकार का बैलेंसड फंड है जो उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो इक्विटी और डेट सिक्योरिटीज के बीच अपने निवेश पोर्टफोलियो को संतुलित करना चाहते हैं।

4. इंडेक्स म्यूचुअल फंड | Index Mutual Fund 

इंडेक्स म्यूचुअल फंड उन शेयरों में निवेश करते हैं जो एक विशेष प्रकार का स्टॉक मार्केट इंडेक्स बनाते हैं जैसे Nifty50 या BSE Sensex।

ऐसे फंड किसी इंडेक्स के जैसे ही समान शेयरों में निवेश करते हैं और बिल्कुल वैसा ही रिटर्न देते हैं जैसा उस इंडेक्स में दिया है।

यह एक प्रकार का पैसिव इन्वेस्टमेंट है जिसमें फंड मैनेजर स्टॉक में फेरबदल नहीं करता और वही स्टॉक रखता है जो उस इंडेक्स में है।

Index fund उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो शेयर बाजार में निवेश तो करना चाहते हैं लेकिन सक्रिय स्टॉक चुनने का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।

उदाहरण के लिए – Aditya Birla Sun Life Nifty 50 Index Fund एक इंडेक्स फंड है जो Nifty 50 Index को ट्रैक करता है |

5. ईटीएफ | ETF

ईटीएफ यानि एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स भी एक प्रकार के इंडेक्स फंड जैसे ही होते हैं पर वह स्टॉक एक्सचेंज पर एक आम शेयर के जैसे ट्रेड भी करते हैं।

चूँकि ETF स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड करते हैं इसलिए उनमें लिक्विडिटी काफी अधिक होती है और उन्हें कभी भी खरीदा या बेचा जा सकता है।

ETF उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो शेयर बाजार में निवेश तो करना चाहते हैं लेकिन उसके अलावा भी वह आम शेयर की तरह ट्रेडिंग करने का लचीलापन भी चाहते हैं।

उदाहरण के लिए – Aditya Birla Sun Life S&P BSE Sensex ETF एक ईटीएफ है जो BSE 100 इंडेक्स को ट्रैक करता है |

6. सेक्टोरल और थीमेटिक म्यूच्यूअल फण्ड | Sectoral & Thematic Mutual Fund

सेक्टोरल और थीमेटिक फंड किसी खास सेक्टर या थीम की कंपनियों के शेयरों में ही निवेश करते हैं।

उदाहरण के लिए मान लें कि एक हेल्थकेयर सेक्टर फंड केवल हेल्थ केयर वाली कंपनियों के शेयरों में ही निवेश करेगा जबकि एक एनर्जी  वाला फंड केवल पावर और एनर्जी कंपनियों के शेयरों में ही निवेश करेगा।

सेक्टोरल और थीमेटिक म्यूचल फण्ड में सबसे अधिक जोखिम होता है क्योंकि ऐसे फंड साइक्लिक होते हैं और इनका रिटर्न घटता बढ़ता रहता है इसलिए यह नए निवेशकों के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है।

ऐसे फंड केवल अनुभवी निवेशकों के लिए है जो किसी खास थीम या सेक्टर में निवेश करके बड़ा रिटर्न कमाना चाहते हैं क्योंकि ऐसे विचार फंड में ग्रोथ की प्रबल संभावनाएं होती है।

उदाहरण के लिए – ICICI Prudential Technology एक Sectoral mutual fund है जो IT सेक्टर के स्टॉक्स में ही निवेश करता है |

भारत में म्यूचुअल फंड कैसे काम करता है | How Mutual Funds Work in India?

म्यूच्यूअल फंड पेशेवर रूप से प्रबंधित ऐसे निवेश के साधन है जो तरह-तरह के निवशकों से पैसा इकट्ठा करते हैं और इसे विभिन्न प्रकार की सिक्योरिटीज के डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं।

भारत में म्यूचुअल फंड को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा रेगुलेट किया जाता है और ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) द्वारा मैनेज किया जाता है।

ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी की भूमिका | Role of AMC

AMC वह कंपनियां है जो निवेशकों की ओर से म्यूचुअल फंड का प्रबंधन करती हैं ।

यह तरह-तरह की सिक्योरिटीज के पोर्टफोलियो को बनने बनाने और मैनेज करने से लेकर के निवेश करने के लिए किसी स्टॉक या बांड का चयन करने और फंड के प्रदर्शन की निगरानी के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।

ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी किसी फंड को मैनेज करने के लिए फीस भी लेती है जिसे एक्सपेंस रेश्यो कहा जाता है।

म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश की प्रक्रिया | How to Invest in Mutual Funds

भारत में किसी भी म्यूच्यूअल फंड में निवेश की प्रक्रिया काफी आसान है और अब यह काम ऑनलाइन भी किया जा सकता है।

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए आप यह काम करें:-

1. म्यूच्यूअल फंड का चुनाव

अपने वित्तीय लक्ष्यों, निवेश की अवधि और जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर आप विभिन्न प्रकार के म्यूच्यूअल फंड में से किसी का चुनाव करें।

म्यूच्यूअल फंड को चुनते समय आप उसके पुराने परफारमेंस को जांच सकते हैं जिससे किया सही ढंग से उसका चुनाव कर पाए।

2. जरूरी डॉक्यूमेंट जमा करें

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए सबसे जरूरी कदम है कि आपको अपना केवाईसी (Know your customer) कराना होगा।

इसके लिए आपको अपना आधार कार्ड और पैन कार्ड को म्यूच्यूअल फंड कंपनी में जमा करना होगा और उसके बाद ही आप अपने निवेश की शुरुआत कर सकते हैं।

3. म्यूचुअल फंड में निवेश करें

म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए भी कई तरीके हैं जैसे AMC की वेबसाइट, तरह-तरह के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे Groww या ऑफलाइन एजेंट के माध्यम से निवेश किया जा सकता है।

म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए आप चाहे तो सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी SIP या लम-सम निवेश भी कर सकते हैं |

म्यूच्यूअल फंड से कमाई कैसे होती है | How Mutual Fund Generate Returns?

म्यूच्यूअल फंड दो तरीके से रिटर्न जनरेट करते हैं जिसमें पहला है कैपिटल अप्रिशिएसन और दूसरा है डिविडेंड।

कैपिटल एप्रिसिएशन का मतलब है कि म्यूचुअल फंड जिन शेयरों में निवेश करता है उनके दाम में बढ़ोतरी हो रही है जिसका प्रभाव सीधा-सीधा फंड के नेट ऐसेट वैल्यू यानी NAV में आता है और वह भी बढ़ने लगता है।

इसी तरह से अगर आपने डिविडेंड प्लान वाला म्यूच्यूअल फंड लिया जाता है तो वह आपको समय-समय पर डिविडेंड देता रहेगा जो उसके लाभ का एक हिस्सा होता है।

किन कारणों से म्यूच्यूअल फंड का रिटर्न प्रभावित होता है?

ऐसे कई सारे कारण हैं जो म्यूच्यूअल फंड द्वारा उत्पन्न रिटर्न को प्रभावित कर सकते हैं जिनमें से कुछ यहां पर बताए गए हैं:-

1. बाजार की स्थिति

म्यूच्यूअल फंड का प्रदर्शन शेयर बाजार के प्रदर्शन से काफी हद तक जुड़ा हुआ है ।

इक्विटी फंड जब भी शेयर बाजार में तेजी होती है तो म्यूच्यूअल फंड का रिटर्न भी बढ़ जाता है जबकि मंदी के दौरान म्युचुअल फंड का रिटर्न कम हो जाता है।

हालांकि डेट फंड की स्थिति शेयर बाजार पर निर्भर नहीं करती है पर यह ब्याज दरों पर निर्भर करती है|

जब भी ब्याज दरें बढ़ती हैं तब आमतौर पर डेट फंड के रिटर्न कम होते हैं और जब भी ब्याज दरें घटती हैं तब डेट फंड के रिटर्न बढ़ जाते हैं।

2. Asset allocation

म्यूच्यूअल फंड का ऐसेट एलोकेशन इसके रिटर्न को काफी प्रभावित करता है।

उदाहरण के लिए जिन म्युचुअल फंड में इक्विटी का प्रतिशत अधिक रहेगा उनमें अधिक जोखिम रहेगा जबकि डेट सिक्योरिटीज बढ़ने के साथ-साथ जोखिम कम हो जाता है लेकिन रिटर्न भी कम हो जाता है।

3. फंड मैनेजर का अनुभव

फंड मैनेजर की विशेषज्ञता या अनुभव म्युचुअल फंड के प्रदर्शन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है ।

एक कुशल फंड मैनेजर सही स्टॉक या बॉन्ड का चयन कर सकता है और निवेशकों को हाई रिटर्न दिला सकता है।

4. Expense ratio

म्यूच्यूअल फंड का एक्सपेंस रेश्यो फंड के द्वारा उत्पन्न रिटर्न को प्रभावित कर सकता है।

उदाहरण के लिए किसी म्यूच्यूअल फंड में अगर एक्सपेंस रेश्यो अधिक है तो वह आपके कुल रिटर्ंस को कम कर सकता है।

5. आर्थिक और राजनीतिक स्थितियां

आर्थिक और राजनीतिक स्थितियां भी म्युचुअल फंड के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती हैं |

उदाहरण के लिए सरकारी नीतियों में बदलाव या आर्थिक मंदी म्युचुअल फंड के रिटर्नस पर बदलाव ला सकती हैं।

म्यूचुअल फंड के फायदे और नुकसान | Mutual Fund Pros & Cons

अगर आप एक नए निवेशक है और म्यूच्यूअल फंड में निवेश करने का मन बना रहे हैं तब आपको इसके फायदे और नुकसान के बारे में भी जानना चाहिए |

आइये समझते हैं :-

म्यूचुअल फंड में निवेश के फायदे | Mutual Fund Pros

म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश के कुछ प्रमुख फायदे हैं :-

1. प्रोफेशनल मैनेजमेंट यानी पेशेवर प्रबंधन

म्यूच्यूअल फंड का प्रबंधन पेशेवर फंड मैनेजरो द्वारा किया जाता है जिनके पास में निवेश प्रबंधन की विशेषज्ञता और काफी अनुभव होता है ।

फंड मैनेजर के गहन रिसर्च, विश्लेषण और सही निवेश के निर्णयों से निवेशकों को लाभ होता है जिससे किसी निवेशक को सीधे बाजार में निवेश करने की अपेक्षा बेहतर रिटर्न मिल सकता है।

म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करके निवेशकों का समय और प्रयास दोनों बच सकता है।

2. Portfolio Diversification

म्यूच्यूअल फंड एक डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में निवेश करते हैं जिससे उतार-चढ़ाव कम होता है और यह बाजार के जोखिम को भी कम करता है।

अगर कोई निवेशक सीधे तौर पर बाजार में निवेश करता है तब वक्त बाजार के जोखिम के अधीन हो जाता है क्योंकि उसे एक म्यूच्यूअल फंड की तरह से डायवर्सिफिकेशन नहीं मिल पाता है।

3. Flexibility यानि लचीलापन 

Mutual fund निवेशकों को अपनी आवश्यकता के अनुसार कई प्रकार के निवेश का ऑप्शन प्रदान करते हैं।

इन्वेस्टर्स अपने निवेश के लक्ष्य और जोखिम लेने की क्षमता के आधार पर इक्विटी, डेट, हाइब्रिड, इंडेक्स, सेक्टोरल या थीमेटिक फंड में से किसी को भी चुन सकते हैं।

निवेशक म्युचुअल फंड में एकमुश्त या सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए निवेश कर सकते हैं।

एसआईपी की मदद से निवेशक नियमित अंतराल पर एक निश्चित राशि का निवेश कर सकते हैं जो निवेश की लागत को एवरेज करने में मदद करता है और बाजार के उतार चढ़ाव को कम करता है |

4. Liquidity यानि तरलता

म्यूच्यूअल फंड में निवेश को काफी लिक्विड माना जाता है इसका मतलब यह है कि इन्वेस्टर किसी भी समय म्यूच्यूअल फंड की यूनिट्स को खरीद और बेच सकते हैं।

अगर किसी निवेशक को कोई इमरजेंसी आ जाती है तो फिर इन्वेस्टमेंट में लिक्विडिटी काफी अधिक मायने रखती है।

5. टैक्स में सुविधा

Elss mutual fund में निवेश कर आप सीधे तौर पर डेढ़ लाख रुपयों तक टैक्स बचा सकते हैं।

वही किसी इक्विटी म्यूचुअल फंड को अगर 1 साल से ऊपर तक होल्ड किया जाता है तो फिर उसमें भी ₹100000 से ऊपर होने वाले फायदे पर केवल 10% का टैक्स देना पड़ता है।

इसके विपरीत, इक्विटी म्यूचुअल फंड पर लघु अवधि (1 साल से कम) के लाभ पर 15% टैक्स लगाया जाता है।

डेट म्युचुअल फंड्स को तीन साल से ज्यादा समय तक रखने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल एसेट माना जाता है और इंडेक्सेशन के बाद इन फंड्स के गेन पर 20% टैक्स लगता है।

म्यूचुअल फंड में निवेश के नुकसान और जोखिम | Mutual Fund Cons

जबकि म्युचुअल फंड निवेशकों को कई तरह के फायदे देते हैं पर ऐसा नहीं है कि उनमें जोखिम नहीं होता है ।

भारत में म्यूचुअल फंड से जुड़े कुछ प्रमुख जोखिम इस प्रकार हैं:

1. बाजार से जुड़ा जोखिम

म्युचुअल फंड विभिन्न प्रकार की सिक्योरिटीज जैसे स्टॉक और बॉन्ड में निवेश करते हैं।

ये securities बाजार जोखिम के अधीन होती हैं जिसमें बाजार की स्थितियों में बदलाव के कारण इनके मूल्य में उतार-चढ़ाव हो सकता है।

म्यूच्यूअल फण्ड में मार्केट रिस्क अधिक होता है ख़ास कर इक्विटी MF में इसलिए सही ढंग से निवेश न करने पर आपको घाटा भी हो सकता है |

2. क्रेडिट रिस्क

क्रेडिट जोखिम वह जोखिम है जब कोई लोन लेने वाला अपना लोन वापस नहीं करता और उसपर डिफ़ॉल्ट कर जाता है |

कॉरपोरेट बॉन्ड या डेट सिक्योरिटीज में निवेश करने वाले म्युचुअल फंड क्रेडिट जोखिम के दायरे में आते हैं।

डिफ़ॉल्ट की स्थिति में उस डेट म्यूचुअल फंड का NAV गिर सकता है जिससे निवेशकों को नुकसान हो सकता है।

3. ब्याज दर जोखिम

ब्याज दर जोखिम वह जोखिम है जो ब्याज दरों में परिवर्तन के दौरान fixed income securities के मूल्य को प्रभावित कर सकता है।

ऐसे म्युचुअल फंड जो fixed income securities में निवेश करते हैं उनमें interest rate risk होता है ।

ब्याज दर बढ़ने की स्थिति में म्यूचुअल फंड का रिटर्न घट सकता है जिससे निवेशकों को नुकसान हो सकता है।

4. मुद्रास्फीति जोखिम

Inflation Risk यानि मुद्रास्फीति जोखिम किसी निवेशक के खरीददारी की शक्ति को कम कर सकती है।

जब जब महंगाई बढती है तब तब पैसे की वैल्यू घट जाती है  और इसलिए जो किसी वस्तु को खरीदने के लिए आपको अब अधिक दाम देने पड़ते हैं |

डेट म्यूच्यूअल फण्ड महंगाई दर के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं।

जब जब महंगाई दर यानि मुद्रास्फीति बढती है तब ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी होती है और इसलिए उस म्यूच्यूअल फण्ड की NAV घट जाती है क्योंकि अब बाकी fixed income securities पर अधिक ब्याज जो मिल रहा है |

इस तरह से निवेशकों को नुकसान हो सकता है।

5. एक्सपेंस रेश्यो, एंट्री और एग्जिट लोड 

अगर आप किसी डेट या इंडेक्स फण्ड में निवेश करते हैं तब तो ठीक है पर कुछ इक्विटी म्यूच्यूअल फण्ड के रेगुलर प्लान में तो काफी एक्सपेंस रेश्यो रहता है जो 2.25% तक भी जा सकता है |

इसी तरह के कुछ म्यूच्यूअल में निवेश करने पर एंट्री लोड और उन्हें रेडीम कराने पर एग्जिट लोड भी लगता है | 

अगर आपने इस बात पर ध्यान नहीं दिया तब लॉन्ग टर्म में आपको नुकसान हो सकता है |

6. रियल टाइम ट्रेड नहीं 

इसका मतलब है कि आप इन्हें  शेयरों जैसे जब चाहे तब बेच या खरीद नहीं सकते |

मान लें आज आपने कोई म्यूच्यूअल फंड बेचने का सोचा तब हो सकता है बेचने के समय तीन दिन बाद की NAV लगे और उस समय वह और घट गया हो |

तब इस दशा में आपका घाटा हो सकता है |

अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में भारत में म्युचुअल फंड का प्रदर्शन

लंबी अवधि में देखा जाये तब भारत में इक्विटी म्यूचुअल फंडों ने FD, रेकरिंग डिपाजिट, सोना और रियल एस्टेट जैसे अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में अधिक रिटर्न दिया है।

एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में भारत में इक्विटी म्यूचुअल फंडों का औसत वार्षिक रिटर्न लगभग 12% रहा है।

हालांकि, यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि म्यूच्यूअल फण्ड का पिछला प्रदर्शन भविष्य के रिटर्न की गारंटी नहीं है।

म्युचुअल फंड का प्रदर्शन बाजार के जोखिमों के अधीन है और यह कई कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि फंड मैनेजर की निवेश रणनीति, आर्थिक और बाजार की स्थिति और पोर्टफोलियो में रखे सिक्योरिटीज का प्रदर्शन।

निवेशकों को अपने investment goals और risk capacity के आधार पर ही म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन का मूल्यांकन करना चाहिए।

उदाहरण के लिए, कम अवधि वाले निवेशक डेट म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं जो अपेक्षाकृत कम रिटर्न तो देते हैं लेकिन इक्विटी म्यूचुअल फंड की तुलना में कम जोखिम वाले होते हैं।

और अंत में…

भारत में म्यूच्यूअल फण्ड एक तेजी से निवेश का उभरता हुआ विकल्प है |

अगर आप एक नए निवेशक हैं तब यह लेख म्यूचल फण्ड क्या है और कैसे काम करता है (what is mutual fund in hindi) आपके काफी काम आया होगा | 

म्युचुअल फंड अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में बढ़िया रिटर्न दे सकते हैं पर वे बाजार के जोखिमों के अधीन भी होते हैं और और इसलिए उनमें लम्बे समय तक निवेशित रहना चाहिए |

आप हमें कमेंट कर बताएं कि आपको ये लेख कैसा लगा और आप म्यूच्यूअल फंड से जुड़ी और क्या जानकारी चाहते हैं |

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